इंसाफ का हथियार जन हित याचिका
(PUBLIC INTEREST LITIGATION - PIL in SUPREME COURT )
1981 से पहले जनहित याचिका दायर करने का चलन नहीं था। 1981 में ‘अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ (रेलवे) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ के केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि कोई गैर-रजिस्टर्ड एसोसिएशन ही संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट् दायर कर सकती है। साथ ही, यह भी कहा कि ऐसा संस्थान जनहित याचिका भी दायर कर सकता है, लेकिन इसके बाद 1982 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी एन भगवती की अगुवाई में सात जजों की बेंच ने बहुचर्चित जज ट्रांसफर केस में ऐतिहासिक फैसला दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम लोगों के अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता। ‘ऑस्ट्रेलियन लॉ कमिशन’ की एक सिफारिश का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आम लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो कोई भी शख्स जनहित याचिका दायर कर सकता है।
इससे पहले केवल पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भी समस्या के बारे में सूचित करता है तो कोर्ट उस पत्र को जनहित याचिका के रुप में स्वीकार करेंगी। दरअसल यह देखा गया है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके अधिकारों का हनन हो रहा होता है, लेकिन वे इस स्थिति में नहीं होते कि कोर्ट में याचिका दायर कर अपने अधिकार के लिए लड़ सकें। बंधुआ मजदूर या जेल में बंद कैदी भी इन लोगों में शुमार हैं। इन लोगों के लिए एनजीओ आदि ने समय-समय पर जनहित याचिकाएं दायर की और इन्हें कोर्ट से इंसाफ दिलाया है।
दो तरह की होती हैं पीआईएल :
मूल अधिकारों के लिए सरकार उत्तरदायी
(PUBLIC INTEREST LITIGATION - PIL in SUPREME COURT )
पहले
केवल पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक
फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी
कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। कोर्ट
ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भी
समस्या के बारे में सूचित करता है तो कोर्ट उस पत्र को जनहित याचिका के रुप
में स्वीकार करेगी। भारत की न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण पड़ाव 80 के दशक की शुरुआत को माना जाता है, जब जनहित
याचिकाओं की शुरुआत हुई। इसके पीछे जजों का आशय यह था कि जो भी गरीब कोर्ट
में नहीं जा सकते या अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं, उनके लिए
कानूनी मदद सुनिश्चित की जाए। न्यायालय ने इस बात की अनुमति दी कि कोई भी
व्यक्ति भले ही वह उस मामले से सीधे सीधे जुड़ा हुआ न भी हो, याचिका दायर
कर सकता है बशर्ते वह लोकहित में हो।
ऐसे बहुत से मामले हैं जिसमें
कोर्ट ने बंधुआ मजदूरों, कैदियों और समाज के विभिन् शोषित वर्गों के
लोगों की जनहित याचिकाएं स्वीकार की जो कि केवल पत्र के रूप में कोर्ट में
भेजी गई थीं और जजों ने संज्ञान लेते हुए उसे जनहित याचिका (पब्लिक
इंटरेस्ट लिटिगेशन- पीआईएल) माना और निर्णय दिया।
अगर
किसी व्यक्ति के मूल अधिकार का हनन हो रहा हो तो वह सीधे तौर पर हाई कोर्ट
और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है, लेकिन अगर लोगों के हितों से
जुड़ी कोई बात हो तो कोई भी व्यक्ति कोर्ट में जनहित याचिका या पीआईएल दायर
कर सकता है। आज जनहित याचिकाओं की लोकप्रियता अपने चरम पर है।
कोई भी दायर कर सकता है पीआईएल
1981 से पहले जनहित याचिका दायर करने का चलन नहीं था। 1981 में ‘अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ (रेलवे) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ के केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि कोई गैर-रजिस्टर्ड एसोसिएशन ही संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट् दायर कर सकती है। साथ ही, यह भी कहा कि ऐसा संस्थान जनहित याचिका भी दायर कर सकता है, लेकिन इसके बाद 1982 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी एन भगवती की अगुवाई में सात जजों की बेंच ने बहुचर्चित जज ट्रांसफर केस में ऐतिहासिक फैसला दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम लोगों के अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता। ‘ऑस्ट्रेलियन लॉ कमिशन’ की एक सिफारिश का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आम लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो कोई भी शख्स जनहित याचिका दायर कर सकता है।
इससे पहले केवल पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भी समस्या के बारे में सूचित करता है तो कोर्ट उस पत्र को जनहित याचिका के रुप में स्वीकार करेंगी। दरअसल यह देखा गया है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके अधिकारों का हनन हो रहा होता है, लेकिन वे इस स्थिति में नहीं होते कि कोर्ट में याचिका दायर कर अपने अधिकार के लिए लड़ सकें। बंधुआ मजदूर या जेल में बंद कैदी भी इन लोगों में शुमार हैं। इन लोगों के लिए एनजीओ आदि ने समय-समय पर जनहित याचिकाएं दायर की और इन्हें कोर्ट से इंसाफ दिलाया है।
दो तरह की होती हैं पीआईएल :
वैसे, याचिकाएं दो तरह की होती हैं - एक ‘प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ और दूसरा ‘पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन’।
प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन में पीड़ित खुद याचिका दायर करता है। इसके
लिए उसे संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद-226 के
तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार है। याचिकाकर्ता को कोर्ट को
बताना होता है कि उसके मूल अधिकार का कैसे उल्लंघन हो रहा है। वहीं जनहित
याचिका (पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन) दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को यह
बताना होगा कि कैसे आम लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है? अपने स्वयं के
हित के लिए जनहित याचिका का इस्तेमाल नहीं हो सकता।कोर्ट को पत्र लिखकर भी
आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए गुहार लगाई जा सकती है। अगर कोर्ट चाहे
तो उस पत्र को जनहित याचिका में बदल सकती है। पिछले दिनों जेल में बंद कुछ
कैदियों ने ‘स्पीडी ट्रायल’ के लिए हाई कोर्ट को पत्र लिखा था। उस पत्र को
कोर्ट ने जनहित याचिका के रुप में स्वीकार कर लिया। मीडिया
में छपी किसी खबर के आधार पर हाई कोर्ट खुद भी संज्ञान ले सकती है और ऐसे
मामले को स्वयं ही जनहित याचिका या पीआईएल में बदल सकती है।
मूल अधिकारों के लिए सरकार उत्तरदायी
कानूनविदों की कहना है कि कई बार पीआईएल का गलत इस्तेमाल भी होता रहा है, लेकिन समय-समय पर कोर्ट ने ऐसे याचिकाकर्ताओं पर भारी हर्जाना लगाया है।
जनहित याचिका हाई कोर्ट में अनुच्छेद-226 और सुप्रीम कोर्ट में
अनुच्छेद-32 के तहत दायर की जाती है। संविधान में प्राप्त मूल अधिकारों के
उल्लंघन के मामले में दायर की जाने वाली इस तरह की याचिका में सरकार को
प्रतिवादी बनाया जाता है क्योंकि मूल अधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार
की होती है। याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट सरकार को नोटिस जारी करती है
और तब सुनवाई शुरू होती है।
जन हित याचिकाओं के पीछे लोकहित की भावना होती है। ये ऐसे न्यायिक उपकरण है जिनका लक्ष्य जनहित प्राप्त करना है। इनका लक्ष्य एक आम आदमी को तीव्र न्याय दिलवाने तथा कार्यपालिका, विधायिका को उनके संवैधानिक कार्य करवाने के लिए किया जाता है।
यह व्यक्ति हित में काम नही आती है,इनका उपयोग पूरे समूह के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है। यदि इनका दुरूपयोग किया जाये तो याचिका कर्ता पर जुर्माना लगाया जा सकता है। इनको स्वीकारना या न स्वीकारना पूरी तरह से न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।
जन हित याचिकाओं के पीछे लोकहित की भावना होती है। ये ऐसे न्यायिक उपकरण है जिनका लक्ष्य जनहित प्राप्त करना है। इनका लक्ष्य एक आम आदमी को तीव्र न्याय दिलवाने तथा कार्यपालिका, विधायिका को उनके संवैधानिक कार्य करवाने के लिए किया जाता है।
यह व्यक्ति हित में काम नही आती है,इनका उपयोग पूरे समूह के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है। यदि इनका दुरूपयोग किया जाये तो याचिका कर्ता पर जुर्माना लगाया जा सकता है। इनको स्वीकारना या न स्वीकारना पूरी तरह से न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।
जनहित से जुड़े कुछ जरूरी तथ्य:
n लोकहित से प्रेरित कोई भी व्यक्ति, संगठन पीआईएल ला सकता है।
इस याचिका से जनता में स्वयं के अधिकारों और न्यायपालिका की भूमिका के बारे मे चेतना बढ़ती है। यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के क्षेत्र को विस्तृत बनाती है। साथ ही इससे व्यक्ति को कई नए अधिकार मिलते हैं। यह कार्यपालिका व विधायिका को उनके संवैधानिक कर्तव्य करने के लिए बाधित करती है, साथ ही यह भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन भी सुनिश्चित करती है।
Public Interest Litigation - PIL can be file in Supreme Court Directly
जनहित याचिका मामला
(Public Interest Litigation - PIL )
किसी भी देश - भक्त व्यक्तियों,
जिनके अधिकार प्रभावित के एक समूह की ओर से एक जनहित याचिका मामले (पीआईएल)
दायर कर सकते हैं. यह आवश्यक नहीं है कि एक मामले दाखिल व्यक्ति इस जनहित
याचिका में एक प्रत्यक्ष हित होना चाहिए. उदाहरण के लिए: मुंबई में एक व्यक्ति को उड़ीसा में कुपोषण मौतों के लिए एक जनहित याचिका दायर कर सकते हैं. किसी
एक पटाखा कारखाना है कि बाल श्रमिकों को रोजगार के खिलाफ कार्रवाई करने के
लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर सकते हैं. किसी भी
व्यक्ति को प्रभावित लोगों के एक समूह की ओर से एक जनहित याचिका दायर कर
सकते हैं. हालांकि, यह मामले के तथ्यों पर निर्भर करती है, चाहे वह या
अनुमति दी जानी चाहिए नहीं किया जाएगा. सुप्रीम (अनुसूचित जाति) ने अपनी
लगातार निर्णय के माध्यम से, कोर्ट `ठिकाना standi के 'सख्त लागू निजी
मुकदमेबाजी के लिए शासन को आराम दिया है.
एक जनहित याचिका दायर हो सकता है जब निम्नलिखित शर्तों को पूरा कर सकते हैं:
• वहाँ एक सार्वजनिक चोट और सार्वजनिक गलत गलत तरीके अधिनियम या राज्य या सार्वजनिक प्राधिकरण की चूक की वजह से किया जाना चाहिए.
• यह समुदाय के कमजोर वर्गों को जो दलित, अज्ञानी और जिसका मौलिक और
संवैधानिक अधिकार है उल्लंघन किया गया है के बुनियादी मानव अधिकारों के
प्रवर्तन के लिए है
. • यह निहित स्वार्थ रखने वाले व्यक्तियों द्वारा तुच्छ मुकदमेबाजी नहीं होना चाहिए.
एक जनहित याचिका (पीआईएल) किसी भी उच्च न्यायालय में दायर किया जा सकता है या सीधे सुप्रीम कोर्ट में.
यह आवश्यक है कि याचिकाकर्ता अपनी खुद की कुछ चोट सामना करना पड़ा है या
व्यक्तिगत करने के लिए मुक़दमा शिकायत की थी नहीं है. जनहित याचिका एक सही
है सामाजिक रूप से जागरूक सदस्य या एक सार्वजनिक उत्साही गैर सरकारी संगठन
के लिए सार्वजनिक चोट के निवारण के लिए न्यायिक मांग के द्वारा एक
सार्वजनिक कारण संभाल देना करने के लिए दिया. इस तरह की चोट या सार्वजनिक
कर्तव्य संविधान के कुछ प्रावधान का उल्लंघन करने के कारण के उल्लंघन से
उत्पन्न हो सकती है. जनहित याचिका उपकरण जिसके द्वारा प्रशासनिक कार्रवाई
की न्यायिक समीक्षा में जनता की भागीदारी का आश्वासन दिया है. यह न्यायिक
प्रक्रिया को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने का थोड़ा प्रभाव है.
किसके खिलाफ: एक जनहित याचिका किसी राज्य जम्मू केन्द्र सरकार, नगर निगम
अधिकारियों, किसी भी निजी नहीं है और पार्टी के खिलाफ ही दायर कर सकते हैं.
एक "प्रतिवादी" के रूप में हालांकि एक "निजी पार्टी जनहित याचिका में किया
जा सकता है संबंधित राज्य प्राधिकारी एक पार्टी बनाने के बाद भी शामिल थे.
उदाहरण के लिए, दिल्ली में एक निजी कारखाने के मामले में, प्रदूषण के
कारण, तो अपने आसपास या किसी भी अन्य देश, राज्य प्रदूषण बोर्ड की सरकार के
खिलाफ एक जनहित याचिका दायर कर सकते हैं और निजी कारखाने के खिलाफ भी
व्यक्ति में रहने वाले लोगों में. हालांकि, एक जनहित याचिका निजी अकेला
पार्टी के खिलाफ दायर नहीं किया जा सकता है, संबंधित राज्य सरकार और राज्य
सत्ता के लिए एक पार्टी बना हो गया है एम.सी. मेहता भारत के वी. (1988) 1
SCC 471 संघ के मामले में - एक जनहित याचिका में गंगा जल प्रदूषण के खिलाफ
इतनी के रूप में लाया गंगा जल के किसी भी आगे प्रदूषण को रोकने के.
सर्वोच्च अदालत का आयोजन किया है कि याचिकाकर्ता नहीं यद्यपि एक नदी तट के
मालिक को वैधानिक प्रावधानों को लागू करने के लिए अदालत में जाने का हकदार
है, क्योंकि वह लोग हैं जो गंगा जल का उपयोग करने के जीवन की रक्षा करने
में रुचि रखते व्यक्ति है. उच्च न्यायालय में प्रक्रिया: एक जनहित याचिका
उच्च न्यायालय में दायर की है, और तब याचिका की दो प्रतियां में दर्ज किया
जाना है. इसके अलावा, याचिका की एक अग्रिम प्रति के लिए प्रत्येक
प्रतिवादी, अर्थात् विपरीत पार्टी पर कार्य किया जाना है, और सेवा के इस
सबूत के लिए याचिका पर चिपका हो गया है. सुप्रीम कोर्ट में: यदि एक जनहित
याचिका सुप्रीम कोर्ट में है, तो (चार + एक) में दायर की है (पांच) अर्थात्
याचिका का सेट करने के लिए दायर किया जाना है. विपरीत पार्टी नकल परोसा
जाता है केवल जब नोटिस जारी किया है
भारत के उच्च न्यायालयों हालांकि और विशेष रूप से, सुप्रीम कोर्ट बार गंभीर
सामाजिक वास्तविकताओं के प्रति संवेदनशील हो गया है, और इस अवसर पर
अत्याचार करने के लिए दिया राहत, गरीब के लिए खुद का प्रतिनिधित्व करने की
क्षमता नहीं है, या करने के लिए प्रगतिशील कानून का लाभ लेने के लिए . 1982
में, सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि असामान्य उपायों के लिए लोगों को न
केवल के अपने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पूरा अहसास सक्षम warranted रहे
थे, लेकिन आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का आनंद, और इसके
दूरगामी फैसले में के मामले में PUDR [डेमोक्रेटिक राइट्स के लिए पीपुल्स
यूनियन] [भारत बनाम संघ 1982 (2) SCC 253], यह मान्यता है कि किसी तीसरे
पक्ष सीधे याचिका, एक पत्र या अन्य मतलब है, कोर्ट के एक मामले में और उसके
हस्तक्षेप की तलाश के माध्यम से चाहे जहां एक पार्टी के मौलिक अधिकारों का
उल्लंघन किया जा रहा थे. अतीत में, कई लोगों को गोली दुरुपयोग है की
विशेषाधिकार की कोशिश की है और इस प्रकार अब कोर्ट आम तौर पर तथ्यों और
शिकायत की एक विस्तृत विवरण की आवश्यकता है, और फिर निर्णय लेता है कि
नोटिस जारी करने के लिए और विपरीत पार्टी कहते हैं. हालांकि, के रूप में
कोई नीचे एक जनहित याचिका के लिए नियमों और विनियमों बिछाने क़ानून है,
कोर्ट में एक जनहित याचिका के रूप में एक पत्र व्यवहार कर सकते हैं, सही और
स्पष्ट तथ्यों लाना चाहिए, और वास्तव में बात की तत्काल एक है, अदालत अगर
पत्र इलाज कर सकते हैं यह एक जनहित याचिका है लेकिन फिर भी यह तथ्य और
परिस्थितियों पर निर्भर करता है, और अदालत संपूर्ण विवेकाधिकार है.
Source : Wikipedia
************************
Public Interest Litigation (PIL) OR जनहित याचिका means litigation for the protection of the public interest
History :
The Supreme Court of India in Sunil Batra (II) v. Delhi Administration,
1980 (3) SCC 488 : 1980 SCC (Cri) 777 : AIR 1980 SC 1579 : 1980 CriLJ
1099 has accepted a letter written to the Supreme Court by one Sunil
Batra, a prisoner from Tihar Jail, Delhi complaining of inhuman torture
in the jail. In Dr. Upendra Baxi (I) v. State of U.P., AIR 1987 SC 191
the court entertained letter sent by the two Professors of Delhi
University seeking enforcement of the constitutional right of the
inmates in a Protective Home, at Agra who were living in inhuman and
degrading conditions. In Miss Veena Sethi v. State of Bihar, 1982 (2)
SCC 583 : 1982 SCC (Cri) 511 : AIR 1983 SC 339 the Court treated letter
addressed to a Judge of the Court by the Free Legal Aid Committee at
Hazaribagh, Bihar as a writ petition. In Citizens for Democracy through
its President v. State of Assam and Others, 1995 KHC 486 : 1995 (2) KLT
SN 74 : 1995 (3) SCC 743 : 1995 SCC (Cri) 600 : AIR 1996 SC 2193 the
Court entertained a letter addressed by Shri Kuldip Nayar, an eminent
journalist, in his capacity as President of "Citizens for Democracy" to
one of the Judges of the Court complaining of human rights violations of
TADA detenues and the same was treated as a petition under Art.32 .Prior to the 1980s, only the aggrieved party could approach the courts for justice. However, post 1980s and after the emergency era, the apex
court decided to reach out to the people and hence it devised an
innovative way wherein a person or a civil society group could approach
the supreme court seeking legal remedies in cases where public interest
is at stake. Justice P. N. Bhagwati and Justice V. R. Krishna
Iyer were among the first judges to admit PIL's in the court. Filing a
PIL is not as cumbersome as any other legal case and there have been
instances when even letters and telegrams addressed to the court have
been taken up as PIL's and heard by the court.
Source : http://en.wikipedia.org/wiki/Public_Interest_LitigationUPTET : Decision on Stay in Highcourt
72 हजार शिक्षकों की भर्ती पर रोक के खिलाफ अपील खारिज
(UPTET : Decision on Stay in Highcourt )
However
purpose of appeal (to vacae stay in Highcourt ) is solved. As case
extended many times , new date comes again and again without hearing.Double bench
clearly issue dirctives for final decision at the earliest. Possibly
decision will go in favor to vacate stay. (Final decison )
And whatever decision comes, But it should come early as it is related to large public interst, Due to a single
person who was not directly involved with this case, not a departmental
person and his objective is clear - to create obstacle in recruitment
process. Court should know such objective behind this issue. If
authority concerned has objection then people can understand purpose of
it.Fundamentals to maintain stay is weak and hopfully stay is vacated in court.
(UPTET : Decision on Stay in Highcourt )
विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश में लगभग 72
हजार सहायक अध्यापकों की नियुक्ति पर लगी रोक के खिलाफ दाखिल विशेष अपील
खारिज कर दी है और अपीलार्थी से कहा है कि वह अपना पक्ष एकलपीठ के समक्ष
रखे।
यह आदेश न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह तथा न्यायमूर्ति वी अमित स्थालकर की
खंडपीठ ने ललित मोहन सिंह व अन्य की अपील पर दिया है। अपील का प्रतिवाद
आलोक यादव ने किया। यादव कपिल देव लाल बहादुर की याचिका पर 9 अप्रैल को एकल
पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है। न्यायालय ने बोर्ड द्वारा सभी बीएसए की तरफ से
विज्ञापन निकालने को नियमविरुद्ध मानते हुए रोक लगा दी है। टीईटी चयनित
लोगों की नियुक्ति की जानी है
News : Jagran (6.4.12)
*********************************************************************************
आश्वासन से बेफिक्र अभ्यर्थी
(UPTET : After assurance of CM, Candidates fear gone)हरदोई। टीईटी उत्तीर्ण संघर्ष मोर्चा के बैनर तले हुई सफल अभ्यर्थियों की बैठक में वक्ताओं ने गुरुवार के दिन को उन सब के लिए काफी शुभ बताते हुए कहा कि अब घबराने की कोई बात नहीं है। मुख्यमंत्री ने तीन सप्ताह के भीतर नियुक्ति प्रक्रि या पूर्व निर्धारित विज्ञप्ति के अनुसार कोर्ट के फैसले के बाद शुरू करने का आश्वासन दिया है। शहीद उद्यान में टीईटी सफल अभ्यर्थियों को संबोधित करते हुए संघर्ष मोर्चा जिलाध्यक्ष अवनीश यादव ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री से मिले प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों ने अपना तार्किक पक्ष उनके सामने रखा। जिस पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने युवाओं के भविष्य और रोजगार को ध्यान में रखकर आश्वासन दिया है। मीडिया प्रभारी देवेश सिंह गौर ने बताया कि संघर्ष मोर्चा प्रतिनिधि मंडल की मुख्यमंत्री से हुई वार्ता सफल रही। उन्होंने नियुक्ति होने तक सभी को संगठित रहने को कहा है। उन्होंने कहा कि अब चयन का आधार पूर्व की भांति टीईटी मेरिट को ही बनाया जाएगा। इस मौके पर हिमांशु पांडे, अतुल शुक्ला, सौरभ त्रिपाठी, आशुतोष शुक्ला, सूरज तिवारी, ह्देश श्रीवास्तव आदि मौजूद थे। उधर, शिखा पाल ने कहा कि कहने की बात नहीं कि इन नियुक्तियों के साथ अभ्यर्थियों ने अपने भविष्य को जोड़ दिया है। यदि इसके बाद भी नियुक्ति के पूर्व मानकों से खिलवाड़ हुआ तो युवाओं को इस सरकार से भी विश्वास उठ जाएगा। ज्योति गुप्ता ने कहा कि तत्कालीन सरकार ने नियुक्ति का जो आधार बताया उस पर बेरोजगारों ने जान लड़ा दी और परीक्षा को उत्तीर्ण किया। उन्होंने कहा कि यदि यह सरकार अपना नियम बनाएगी और पिछले को खत्म कर देगी तो न्याय नहीं करेगी। जिलाध्यक्ष अवनीश यादव ने कहा कि अब टीईटी अभ्यर्थियों को पूर्ण उम्मीद हो चली है कि मुख्यमंत्री अधिकारों का हनन नहीं करेंगे और टीईटी सफल अभ्यर्थियों को न्याय दिलाएंगे।
News : Amar Ujala (7.4.12)
UPTET : Interpretation of Double Bench Order in Highcourt By A BLOG VISITOR (Mr. Shyam Dev Mishra )
प्रेषक: Shyam Dev Mishra <shyamdevmishra@gmail.com>
दिनांक: 7 अप्रैल 2012 2:32 am
विषय: TRANSLATION OF DOUBLE BENCH DECISION WITH CLEAR-CUT CLARIFICATION
*************************
INTERPRETATION
एकल पीठ द्वारा पारित स्थगनादेश के विरुद्ध दाखिल विशेष अपील पर6 अप्रैल 2012 को डबल बेंच द्वारा दिए गए निर्णय का अनुवाद
अनुवाद के पहले आप सबसे कहना चाहता हूँ कि "हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या??" अर्थात हाथ में पहने जाने वाले कंगन को देखने के लिए आईने की क्या जरुरत और (फारसी भाषा) पढ़े-लिखे आदमी को फारसी में लिखी बात समझने में क्या समस्या होगी? भाइयों बचपन में हमें एक कहानी के माध्यम से शिक्षा दी गई थी कि यदि कोई कहे कि कौवा कान ले गया तो हमें बिना सोचे-समझे कौवे के पीछे भागने के बजाय ये देखना चाहिए कि हमारा कान अपनी जगह है कि नहीं. आज दिनभर ब्लॉग में कोर्ट के निर्णय की मनमानी व्याख्या और उसपर जिस प्रकार कि बहस और आशंकाएं चलती रहीं, उसे ध्यान में रखते हुए सभी चिंतित मित्रों से आग्रह है कि आप शिक्षक बन कर जब समाज को दिखा सकते हैं तो आपको कौन दिशाभ्रष्ट कर सकता है. कही-सुनी बातों के बजाय शांत-मन से अपने विवेक का इस्तेमाल करें और वास्तविकता को समझे.प्रस्तुत है डबल बेंच द्वारा दिए गए निर्णय का सरल अनुवाद:
इलाहाबाद हाईकोर्टकेस अपील डिफेक्टिव स. - 280 of 2012
वादी - ललित मोहन सिंह एंड एएनआर
प्रतिवादी - स्टेट ऑफ़ यू.पी. व अन्यवादी के वकील - सिद्धार्थ खरे व अशोक खरे
प्रतिवादी के वकील - सी.वी.सी. के.एस. कुशवाहा
1. बेसिक शिक्षा परिषद् (बोर्ड) द्वारा संचालित विद्यालयों में प्रशिक्षु अध्यापकों के चयन का एक विज्ञापन 30.11.2011 को प्रकाशित हुआ. प्रशिक्षु अध्यापक सभी जिलों में तैनात होने हैं और यह विज्ञापन उत्तर प्रदेश के समस्त जिला शिक्षा अधिकारियों की ओर से था.
2. इस विज्ञापन को चुनौती देते हुए रिट पेटीशन स. 76039 / 2011 दायर की जा चुकी है. एकल जज इस विज्ञापन के अंतर्गत होने वाले चयन और नियुक्ति पर स्थगनादेश देते हुए एक आदेश 04.01.2012 को पारित कर चुके हैं. अतएव दो वादियों, जो सम्बंधित विज्ञापन में स्वयं के अभ्यर्थी होने का दावा करते हैं, द्वारा (उपरोक्त स्थगनादेश के सन्दर्भ में) अपील दायर दाखिल करने की अनुमति प्रदान करने का प्रार्थनापत्र.
3. यह ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्तागण प्रशिक्षु शिक्षकों के चयन के आवेदनकर्ता भी हैं, अनुमति प्रदान की जाती है. चूंकि प्रतिवादी को अपील दायर करने में हुई देरी को क्षमा करने में कोई ऐतराज़ नहीं है, अतः देरी को क्षमा किया जाता है और इसे सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाता है.
4. वादी के अधिवक्ता द्वारा निवेदन किया गया कि: विज्ञापन के द्वारा 72825 पद विज्ञापित किये गए. यह रिट पेटीशन केवल एक व्यक्ति की ओर से है और इन मामले में कोई अंतरिम आदेश पारित करना उचित न होगा; चयन प्रकिया को एकल जज द्वारा स्थगित नहीं किया जाना चाहिए था अपितु एकल जज को चयन-प्रकिया को जारी रहने की अनुमति देनी चाहिए थी और चयन रिट पेटीशन में दिए जाने वाले निर्णय द्वारा बाध्य होने चाहिए थे. (एकल जज द्वारा) स्थगनादेश पारित करने का कारण था कि प्रदेश के जिला शिक्षा अधिकारियों की ओर से था. यह गलत नहीं था क्योंकि जिला शिक्षा अधिकारीगण नियुक्ति-प्राधिकारी हैं और उन सभी की ओर से साथ में हमेशा एक विज्ञापन जारी किया जा सकता है. एक विज्ञापन का प्रकाशन व्यावहारिक है और समूचे जिलों में आवेदकों के चयन का बेहतर तरीका है.
4. The counsel for the appellant submits that: By the advertisement, 72825 posts have been advertised. This writ petition is on behalf of only one person and it is not proper to grant interim order in this case; The
selection process ought not to have been stayed by the single Judge but
the single Judge should have permitted the selection process to go on
and the selection might have been made subject to decision in the writ
petition; The
reason for grant of stay order was that advertisement was on behalf of
District Basic Education Officers of the State. This is not erroneous
because the District Basic Education Officers are the appointing
authority and one advertisement can always be issued on their behalf
together;
The publication of one advertisement is practical and better way of selecting candidates in the entire district. (ध्यान दें कि बिंदु 4 के अंतर्गत जो भी कुछ है वह कोर्ट का मत नहीं बल्कि वादी अर्थात ललित मोहन जी के अधिवक्ता द्वारा किया गया निवेदन / दी गई दलीलें हैं.)
5. पेटिशनर-प्रतिवादी के अधिवक्ता ने कहा कि; इस रिट पेटीशन (स. 76039 / 2011) के अलावा, अन्य भी रिट पेटीशन हैं जो कि इस के साथ जोड़ दी जानी चाहिए. उन में कोई अंतरिम आदेश नहीं है. लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि केवल एक व्यक्ति चयन को चुनौती दे रहा है.
5. The counsel for the petitioner-respondent states that: Apart from this writ petition there were other writ petitions that should have been connected with this one; There is no interim order in those cases, but it is not correct to say that only one person is challenging the selection. (ध्यान दें कि बिंदु 5 में जो कुछ है वह स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता द्वारा किया गया निवेदन / दी गई दलील है.)
6. पक्षों के बीच कोई विवाद नहीं है कि इस रिट पेटीशन (स. 76039 / 2011 ) में काउंटर और रिजोइंडर शपथपत्रों का आदान-प्रदान हो चुका है और यह स्वयं एकल जज के सम्मुख 09 अप्रैल 2012 को प्रारंभ हो रहे सप्ताह में अंतिम निस्तारण के लिए सूचीबद्ध है. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कि (बड़ी) संख्या में व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होना है, यह उचित होगा कि एकल जज जल्द से जल्द अंतिम रूप से इस रिट पेटीशन (स. 76039 / 2011 ) के निर्णय पर विचार करें.
6. It is not disputed between the parties that counter and rejoinder affidavits have been exchanged in the writ petition and the writ petition itself is listed before the single Judge for final disposal in the week commencing 9.4.2012.
Considering the facts that the number of persons are to be employed, it
would be appropriate that the single Judge might consider finally
deciding the writ petition at the earliest.
(ध्यान दें कि केवल बिंदु स. 6 में दी गई बातें ही डबल बेंच की राय है जिसमे एकल जज से अपेक्षा की गई है कि वो जल्द-से-जल्द रिट पेटीशन (स. 76039 / 2011 ) पर अंतिम निर्णय देने पर विचार करे)7. उपरोक्त अवलोकनों के साथ उपरोक्त विशेष अपील ख़ारिज की जाती है.
आदेश तिथि: - 6.4.2012 **************************************************************************************************
उपरोक्त निर्णय से स्पष्ट है कि चूंकि स्वनामधन्य प्रातःस्मरणीय महामना कपिल देव लाल बहादुर यादव जी महाराज द्वारा दायर याचिका एकल पीठ के सम्मुख निर्णय के लिए आने वाले सप्ताह में (वर्तमान में 9 अप्रैल को) सूचीबद्ध है, डबल बेंच ने विज्ञापन की वैधानिकता के सन्दर्भ में कोई भी मत या निर्णय न देते हुए मात्र एकल जज से विषयगत याचिका के कारण प्रभावित हो रहे लोगों की बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए शीघ्रातिशीघ्र (परन्तु बिना कोई समय-सीमा दिए) इसके अंतिम निस्तारण पर विचार करने की अपेक्षा की है. भले ही इसमें टी.ई.टी. उत्तीर्ण और भर्ती चाहने वालों को प्रत्यक्ष रूप से कुछ सकारात्मक न दिखे पर याचिका की सुनवाई की तारीख 19 अप्रैल से घटकर 9 अप्रैल हो जाना भी दर्शाता है कि सुनवाई के लिए मामलों के क्रम निर्धारण में पहले की अपेक्षा अब इसे इसे प्राथमिकता दी गई है. यह भी डबल बेंच के द्वारा एकल पीठ से की गई अपेक्षा का नतीजा हो सकता है.अब मैं 9 अप्रैल को सिंगल बेच के संभावित निर्णय, 11 अप्रैल 2012 को राज्य-स्तरीय टी.ई.टी. स्टीयरिंग कमेटी के संभावित निर्णय और मुख्यमंत्री द्वारा टी.ई.टी. से जुड़े पहलुओं की जाँच और उनपर 3 हफ़्तों में अपनी संस्तुति देने के लिए मुख्य-सचिव की अध्यक्षता में गठित तीन-सदस्यीय समिति की कार्य-प्रगति और उसकी संस्तुतियों की प्रतीक्षा कर रहा हूँ. इस बीच यदि कुछ और नया मेरे संज्ञान में आता है तो आपके साथ साझा करूँगा.
सधन्यवाद, आपकाश्याम देव मिश्रा
******************************
See Exact Case / Order Passed By Double Bench :UPTET : Allahabad Highcourt Double Bench Pass an Order to Single Bench / Judge to Vacate / Finalize is Decision on 9th April 2012Double Bench issue directives to Single Bench to " single Judge for final disposal in the week commencing 9.4.2012 " Considering
the facts that the number of persons are to be employed, it would be
appropriate that the single Judge might consider finally deciding the
writ petition at the earliest. It means hopefully stay on Primary Teacher recruitments will vacated from Allahabad Highcourt.See Case Details
*****************
DOUBLE BENCH TODAY JUDGEMENT:- HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD Case :- SPECIAL APPEAL DEFECTIVE No. - 280 of 2012 Petitioner :- Lalit Mohan Singh And Anr. Respondent :- State Of U.P. And Others Petitioner Counsel :- Siddharth Khare,Ashok Khare Respondent Counsel :- C.S.C.,Illigible,K.S. Kushwaha Hon'ble Yatindra Singh,J. Hon'ble B. Amit Sthalekar,J.
1.
An advertisement for selection of Apprentice Teachers was published on
30.11.2011 in the primary school run by UP Basic Education Board (the
Board). The Apprentice
teachers are to be engaged in all districts and this advertisement was
on behalf of all District Basic Education Officers of the State of UP.
2. WP No. 76039 of 2011 has been filed challenging the advertisement. The single
Judge has passed an order on 4.1.2012 staying the selection and
appointment in pursuance of the advertisement. Hence the present appeal
by the two appellants, who claim themselves to be the applicants in the
advertisement alongwith application to grant leave to file appeal.
3.
Considering the facts that the appellants are also applicants in the
selection of Apprentice Teachers, the leave is granted. The respondents
have no objection to condone the delay in filing the appeal. The delay
is condoned and it is heard for admission.
4. The counsel for the appellant submits that: By the advertisement, 72825 posts have been advertised. This writ petition is on behalf of only one person and it is not proper to grant interim order in this case; The
selection process ought not to have been stayed by the single Judge but
the single Judge should have permitted the selection process to go on
and the selection might have been made subject to decision in the writ
petition; The
reason for grant of stay order was that advertisement was on behalf of
District Basic Education Officers of the State. This is not erroneous
because the District Basic Education Officers are the appointing
authority and one advertisement can always be issued on their behalf
together;
The publication of one advertisement is practical and better way of selecting candidates in the entire district.
5. The counsel for the petitioner-respondent states that: Apart from this writ petition there were other writ petitions that should have been connected with this one; There is no interim order in those cases, but it is not correct to say that only one person is challenging the selection.
6. It is not disputed between the parties that counter and rejoinder affidavits have been exchanged in the writ petition and the writ petition itself is listed before the single Judge for final disposal in the week commencing 9.4.2012.
Considering the facts that the number of persons are to be employed, it
would be appropriate that the single Judge might consider finally
deciding the writ petition at the earliest.
7. With the aforesaid observations, the special appeal is dismissed.
Order Date :- 6.4.2012 SK Singh
बी. एड. डिग्री धारकों को लिये सुनहेरा अवसर
(CTET / TET / UPTET : Golden Opportunities for B. Ed - TET Qualified in Coming Years )
प्राइमरी टीचर (स्थाई नोकरी ) के लिये सुनहेरा अवसर है
और उसके बाद खबरें आयी की 80,000 नए पदों की और रिक्तिओं के लिये नए सेशन से भर्ती की जा सकती हैं .
एन सी टी ई के नियमों के अनुसार अब प्राइमरी / अपर प्राइमरी , चाहे वो सरकारी स्कूल हो या प्राइवेट हर जगह , टी ई टी उत्तीर्ण अभ्यर्थी ही पात्र हैं
इसको देखते हुए लाखों बी एड . ( टी ई टी उत्तीर्ण) के लिये आने वाला समय सुन्हेरा अवसर लेकर आने वाला है
क्योंकी अब सी टी ई टी / टी ई टी एक्साम में बी एड धारी, प्राइमरी लेवल एक्साम के पात्र नहीं है :
Now you can see advt. of state for TET / CTET, B. Ed Holders are not eligible.
In
some states, If no TET exam conducts they may have some relaxation as
you see in Bihar , Tamilnadu etc. But now most of states conducted TET
for Primary Level ( to generate adeqate skilled manpower of qualified
candidates including B. Ed) and now they closed door for B. Ed holders
at Primary Level.
If any of visitor having suggestions /updated info then give it through comments.
UPTET : Very Good News : Decision / Next Date on 9th April 2012 to Vacate Stay in Highcourt for Teachers Recruitment in UP
Date Change from 19th April 2012 to 9th April 2012 as per informed by Vivekanand jee -(President UP TET Morcha )
See Details :-
Special
appeal 280/2012 Lalit mohan singh and Ranjeet singh yadav ki name se
file karai gai thee jisme Sr. Advocate Ashok khare hamare wakil hai aur
isme lagbhag 30 minit tak bahas hue aur judge mahoday hamara pakash
sunte hua single bench ko direction diya hai ki is case ko jald se jald
final 9 april ko kiya jai. And Friends this special appeal ko file karne
me kise se koi paise nahi liye gage the aur is case ke name pe bina
mujhe aur Ranjeet singh yadav ko call kiye kise ko koi paise na diya jai
nahi to iski jimmedari aap ki hogi becase bahut log case ke name par
paise wasooli karte hai agar aap koi sahyog karna chahte hai to please
contact-8081934675 and Ranjeet yadav-8687508667
Friends
hum sab abhi court me hai aur hamare paksh me judge ne quick action
nahi lege hue ye daleel diya hai ki single bench me rejoinder affidavit
and counter affidavit have been excnanged so this case was listed on
09.04.2012 week commincing so directed the several thousand applicant
was effected this order so directed 9 april final hearing.
UPTET : New Date for hearing : 19 April 2012 (Likely ) regarding Stay on PRT Teachers Selection in UP
Case Status - Allahabad
Pending
| |
Writ - A : 76039 of 2011 [Varanasi]
| |
Petitioner:
|
YADAV KAPILDEV LAL BAHADUR
|
Respondent:
|
STATE OF U.P. & OTHERS
|
Counsel (Pet.):
|
ALOK KUMAR YADAV
|
Counsel (Res.):
|
C.S.C.
|
Category:
|
Service-Writ Petitions Relating To Primary Education (teaching Staff) (single Bench)-Appointment
|
Date of Filing:
|
21/12/2011
|
Last Listed on:
|
22/03/2012 in Court No. 33
|
Next Listing Date (Likely):
|
19/04/2012
|
This
is not an authentic/certified copy of the information regarding status
of a case. Authentic/certified information may be obtained under Chapter
VIII Rule 30 of Allahabad High Court Rules. Mistake, if any, may be
brought to the notice of OSD (Computer).
Source : http://allahabadhighcourt.in/casestatus/caseDetailA.jsp?type=WRIA&num=76039 & year=2011
मांगें स्वीकार होने पर झूमे टीईटी अभ्यर्थी
(UPTET : After fulfilling Demands of TET Candidates by CM Akhilesh, TET candidate filled with Joy and Excitement )
प्रतापगढ़ :
टीईटी अभ्यर्थियों की मांगों को प्रदेश सरकार द्वारा मान लिए जाने से उनमें
खुशी की लहर है। उन्होंने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर इसका इजहार भी किया।
सपा कार्यालय पहुंचे अभ्यर्थियों ने जिलाध्यक्ष भइयाराम पटेल सहित अन्य पदाधिकारियों को मिठाई खिलाई।
इस मौके पर अभ्यर्थी विवेक सिंह, विनोद तिवारी, विपिन चंद्र तिवारी, संदीप
गुप्ता, आशीष सिंह, चंद्र प्रकाश वर्मा, चंद्रशेखर, अनूप तिवारी आदि ने
कहा कि प्रदेश सरकार से हुई वार्ता सफल रही। इस मौके पर मोहम्मद वासिक खान,
प्यारे लाल खैरा, अनूप ओझा, विवेक सिंह, आशुतोष पांडेय, मोहम्मद अफसर आदि
मौजूद रहे।
News : Jagran (6.4.12)
No comments:
Post a Comment