UPTET : Information Regarding PIL Provided By Mr. Shyam Dev Mishra
FREE LEGAL AID FOR FILING CASE IN SUPREME COURT FOR UP PRIMARY TEACHERS RECRUITMENT ISSUE
---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: Shyam Dev Mishra <shyamdevmishra@gmail.com>
दिनांक: 5 मई 2012 10:27 pm
विषय: FREE LEGAL AID FOR FILING CASE IN SUPREME COURT FOR UP PRIMARY TEACHERS RECRUITMENT ISSUE
आपके
ब्लॉग पर मौजूद तमाम भाई-बहनें जिस प्रकार लंबित प्राइमरी शिक्षक भर्ती
प्रक्रिया के मुद्दे पे सुप्रीम कोर्ट जाने के पक्ष में हैं पर कतिपय
कारणों से नहीं जा पा रहें हैं, उनके लिए मैं ये जानकारी भेज रहा हूँ कि
किस प्रकार आप मुफ्त में सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख सकते हैं बिना
आर्थिक खर्च उठाये या जुर्माने से डरे. पर उस से पहले ये दो लाइन की कहानी
जरूर पढ़ें ताकि अगर मैं सही हूँ तो समय रहते टी.ई.टी. उत्तीर्ण अभ्यर्थी
सही कदम उठा सकें. कृपया इसे पब्लिश जरूर करें.
"शिव-मंदिर
में आनेवाले सैकड़ों शिवभक्तों ने शिवरात्रि के एक दिन पहले इकट्ठे होकर
शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ को सारा दिन दूध से नहलाने का निर्णय लिया और
निश्चित किया कि रात में हर भक्त मंदिर में रखे गए विशाल बर्तन में एक-एक
लोटा दूध डाल जायेगा ताकि इस तरह इकठ्ठा दूध शिवरात्रि के अवसर पर काम आ
सके. भक्तगण रात के अँधेरे में अपने हिस्से के दूध की जगह लोटा-भर पानी उस
विशाल बर्तन में ये सोच कर डालते रहे कि एक मैं ही अगर पानी डाल दूंगा तो
कौन सा किसी को पता चलेगा, बाकि लोग तो दूध ही डाल रहे हैं न! अगले दिन उस
विशाल बर्तन से विश्वास का दूध नहीं, सिर्फ धोखे का पानी निकला. "
भाइयों
और बहनों, क्या आप भी सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जाने के निर्णय के भागीदार हैं
या सिर्फ दूसरों के भरोसे अपने हिस्से का काम अनदेखा करेंगे? अब तो
जागिये...!!
ध्यान दें कि आप लोगों में से तमाम भाई या बहन चाहें तो बिना खर्च के ---
१. आप सुप्रीम कोर्ट में अपने साथ हो रहे अन्याय को खुद उठा सकते हैं.
२. एक समूह के रूप में सुप्रीम कोर्ट में जाकर अपने साथ हो रहे अन्याय की शिकायत कर सकते है.
३.
आप सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश में सरकार के कदमों से शिक्षा के
अधिकार अधिनियम, २०१० के उद्देश्यों की पूर्ति में पड़ने वाली बाधा और
प्रदेश के लाखों बच्चों को मिले शिक्षा के संवैधानिक अधिकारों के होने वाले
हनन का मुद्दा उठा सकते हैं.
४.
आप सुप्रीम कोर्ट के जरिये उत्तर प्रदेश सरकार से यह पूछ सकते हैं कि
"निशुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, २००९' की धारा ३८ के
अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग करते हुए उक्त अधिनियम के उपबंधों को
कार्यान्वित करने के प्रयोजन से जब उत्तर प्रदेश शासन (शिक्षा अनुभाग-५)
द्वारा अधिसूचना स. २५१०/७९-५-२०११-२९/२००९ दि नांक २७ जुलाई २०११
द्वारा "उत्तर प्रदेश निशुल और बाल शिक्षा का अधिकार नियमावली. २०११" को
अधिसूचित कर दिया गया तो फिर इसके लिए पर्याप्त और सुनियोजित कार्यवाही
क्यूँ नहीं की जा रही? यदि की जा रही है तो उसका विवरण दिया जाये.
५.
आप सुप्रीम कोर्ट के जरिये केंद्र सरकार से पूछ सकते हैं कि "निशुल्क व
अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, २००९' की धारा ३८ के अंतर्गत
प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग करते हुए उक्त अधिनियम के उपबंधों को
कार्यान्वित करने के प्रयोजन से जब उत्तर प्रदेश शासन (शिक्षा अनुभाग-५)
द्वारा अधिसूचना स. २५१०/७९-५-२०११-२९/२००९ दि नांक २७ जुलाई २०११
द्वारा "उत्तर प्रदेश निशुल और बाल शिक्षा का अधिकार नियमावली. २०११" को
अधिसूचित करने के उपरांत भी फिर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिनियम के
उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कदम न उठाये जाने पर भी केंद्र सरकार उत्तर
प्रदेश सरकार को अधिनियम में दिए गए अधिकारों के अंतर्गत दिशा निर्देश
क्यूँ नहीं दे रही है?
६. अपने किसी करीबी वकील से सलाह-मशवरा करके उचित आधार पर, उचित रूप में याचिका दायर कर सकते हैं.
७.
अनुसूची जाति/जनजाति, महिला, एवं विकलांग व १२५०००/- से कम वार्षिक आय
वाले लोग, इनमे से एक, एक से अधिक या सभी शर्तें पूरी करने वाले भाई-बहन
कोर्ट जा सकते हैं. बेहतर होगा कि तमाम अलग अलग कैटेगरी के लोग, तमाम अलग
अलग आधारों पर आवेदन करें, ताकि किसी न किसी का आवेदन, किसी न किसी आधार पर
स्वीकार कर लिया जाये.
८.
सुनने में अजीब लग सकता है पर १४ साल से कम उम्र से कम के किसी जागरूक
बच्चे के द्वारा प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापकों की भारी कमी
से उनके अनिवार्य शिक्षा पाने के संवैधानिक अधिकार के होने वाले हनन का
सवाल उठाते हुए भी शिक्षा के अधिकार के अधिनियम के उद्देश्यों कि पूर्ति के
लिए उत्तर प्रदेश सरकार की लेट-लतीफी और लापरवाही को रेखांकित करते हुए
सर्वोच्च न्यायालय के जरिये उत्तर प्रदेश सरकार से अपनी नीति स्पष्ट करने
और उठाये गए या उठाये जाने वाले कदमों की जानकारी मांग सकता है.
इनमे से आप जानकार लोगो से राय लेकर सही विकल्प चुन सकते हैं. पर कुछ न कुछ करने से ही कुछ होगा.
खैर, मैं अपना काम करता हूँ यानि जानकारी देना और आप तय करें अपना, क्योंकि फैसला आपका, कर्म आपके, किस्मत आपकी, भविष्य आपका !!!
धन्यवाद सहित,
आपका,
श्याम देव मिश्रा
मुंबई.
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उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती के मामले में सुप्रीमकोर्ट से राहत पाने का स र्वसुलभ तरीका
सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी(सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समि ति)
(भाइयों, धरना-प्रदर्शन भी लोकतंत्र में न्याय पाने या अपनी मांग मनवाने का एक आजमाया हुआ हथियार है पर उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती के मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत पाने के इच्छुक मित्र इस जानकारी से लाभ ले सकते हैं. अगर वे सच में कुछ करना चाहते हैं मगर खर्च और जानकारी के अभाव के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहें हैं तो यह रास्ता उनके लिए सर्वोत्तम है पर अगर केवल बातें करना और दूसरों के भरोसे बैठे रहना है तो उनकी मदद कोई नहीं कर सकता)
जनसामान्य में एक सर्वमान्य मान्यता है कि किसी मामले में राहत पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना एक आम आदमी या किसी जमीन से जुड़े आदमी के बस की बात नहीं है जो कि सर्वथा भ्रम है. सुप्रीम कोर्ट तक जनसामान्य की पहुँच को आसान और कम खर्चीला (लगभग नगण्य) बनाने के उद्देश्य से "लीगल सर्विस अथोरिटीज एक्ट, 1987" के द्वारा सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी का गठन किया गया है.
मुफ्त कानूनी सहायता (मुफ्त वकील और न्यायालय शुल्क से से छूट) पाने के लिए समिति तक आप इन मामलों में जा सकते हैं:
१. सुप्रीम कोर्ट में कोई केस फाइल करने या खुद पर दायर किसी केस में बचाव करने के लिए जिनमे शामिल हैं,
अ. हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध अपील / विशेष अनुमति याचिका (सिविल/क्रिमिनल)
ब. मौलिक अधिकारों के हनन के विरुद्ध याचिका, जिसमे सरकार द् वारा "उठाये गए किसी कदम" या "कोई कदम न उठाने की" वैधता को चुनौ ती दी गई हो या सरकार द्वारा जारी किसी आदेश या या कानून की वैधता को चुनौती दी गई हो, जिनसे आपके किन्ही मौलिक अधिकारों का हनन होता हो.
स. किसी केस को भारत में एक राज्य से अन्य राज्य में लाने के लिए याचिका
द. अपनी किसी समस्या पर कानूनी सलाह पाने के लिए.
ध्यान दें कि मुफ्त कानूनी सलाह पाने के लिए कोई इलिजिबिलिटी क्राइटेरिया नह ीं है.
जबकि मुफ्त कानूनी सहायता पाने के लिए पहले तो आपको इन वर्गों में से किसी एक से सम्बंधित होना चाहिए:
अनुसूचित जाति या जनजाति, महिला, बच्चा, विकलांग, कोई ऐसा व्यक्ति जिसकी वार्षिक आय 125000/- से कम हो.
दूसरा, समिति को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि आपके केस में तर्कसंगत होने के कारण जीत के अच्छे आसार है. इस कारण, कोई भी व्यक्ति आराम से कम से कम आवेदन तो करे, यदि समिति के विशेषज्ञ आपके पक्ष से सहमत होंगे तो आधी लड़ाई तो आप ऐसे ही जीत जायेंगे.
व्यापक जनहित के मुद्दे और विशेष मामले, जिनके लिए लिखित में कारण दिए जाने चाहिए, मुफ्त कानूनी सहायता के लिए उपयुक्त माने जा सकते हैं.
इसके लिए आपको साधारण रूप से आवेदनपत्र और संलग्नक (जो समिति की वेबसाईट http://www.sclsc.nic.in/) पर तथा मेरे पास और मुस्कान जी के पास उपलब्ध हैं) के साथ-साथ सारे सम्बन्धी दस्ता वेज (उदहारण के लिए अगर आप हाईकोर्ट के किसी आदेश के खिलाफ अपील करना चाहते हैं तो उस आदेश और उसके सभी संलग्नकों की प्रति याँ) समिति को भेजने होंगे.
जबकि मुफ्त कानूनी सलाह के लिए आप किसी भी कार्यदिवस में सुबह १०:३० से सायं ५:०० बजे तक फोन कर सकते हैं या पत्र द्वारा सलाह ले सकते हैं जिसका जवाब आपको १५ दिन के अन्दर समिति से मिल जायेगा. ई-मेल से प्रेषित प्रश्नों का उत्तर जल्दी मिल जाता है. कानूनी सलाह पूर्णतया निशुल्क है.
समिति सुपीम कोर्ट के एक जज की अध्यक्षता में भारत के चीफ जस्टिस के द्वारा मनोनीत विशेषज्ञों की समिति है. समिति के पास अनुभवी वकीलों का एक पैनल होता है जो दस्तावेजों की स्क्रीनिंग करते है, तथा कोर्ट में केस लडते हैं. इसके अलावा समिति में एक कानूनी सलाहकार-सह-एक्जीक्यूटिव होता है जो फोन/पत्र/मेल द्वारा मांगी गई जानकारियां और सलाह देता है तथा दस्तावेजों की जांच करता है. भले ही कानूनी सहायता के इच्छुक व्यक्ति को उसका मनचाहा वकील न मिले पर समिति इस बात को तय करती है कि केवल काबिल वकील या वक्कीलों का समूह उस केस को हैंडल करे.
आपके आवेदन के १५ दिनों के अन्दर समिति आपके भेजे दस्तावेजों के आधार पर तथा आपके आवेदन में दिए गए विवरण के आधार पर तय करती है कि आप जरूरी शर्तें पूरी करते हैं या नहीं और आपको मुफ्त कानूनी सहायता दी जाएगी या नहीं और आपको लिखित रूप से समिति के निर्णय से अवगत करा दिया जाता है. इस से सहमत न होने पर आप समिति के अध्यक्ष से अपील कर सकते हैं.
आपकी मुफ्त कानूनी सहायता का आवेदन स्वीकार होने की स्थिति में आपको समिति द्वारा भेजा गया वकालतनामा और हलफनामा हस्ता क्षर करके तथा हलफनामा नोटरी करा के भेजना होता है. इसी बीच आपका केस लड़ने के लिए समिति द्वारा निश्चित किया गया अधिवक्ता याचिका का ड्राफ्ट तैयार करता है और आपका हलफनामा और वकालतनामा तैयार होकर वापस आते ही आपकी और से केस सुप्रीम कोर्ट में फाइल कर देता है और केस में आपकी और से बहस करता है. आपको भी आपके केस से सम्बंधित अधिवक्ता का नाम बताया जाता है और आपकी और से कोर्ट में दाखिल दस्तावेजों की प्रतियाँ भेजी जाती हैं. अत्यंत विशेष परिस्थितियों में आपके अनुरोध पर समिति किसी वरिष्ठ अधिवक्ता को भी आपका केस हैंडल करने को कह सकती है. आपका अधिवक्ता आपसे संपर्क में रहता है और समय समय पर आपकी केस के बारे में जानकारी देता रहता है और जरूरी कागजातों के लिए मांग कर सकता है. इस प्रकार आप घर बैठे मुफ्त में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी राहत पा सकते हैं.
समिति का पता है,
The Secretary
Supreme Court Legal Services Committee
109, Lawyers’ Chambers
Supreme Court Compound,
New Delhi - 110 001.
Ph. Nos.23388313, 23073970, 23381257 e-mail : sclsc@nic.in
आशा ही नहीं विश्वास है कि यह जानकारी कुछ मित्रों में जोश भरेगी और कुछ मित्र इस दिशा में प्रयास करेंगे. कम से कम इस मुद्दे पर कानूनी सलाह के लिए तो हर कोई फ़ोन कर सकता है, मेल कर सकता है, पत्र लिख सकता है, समिति भी जब इतने आवेदन एक साथ देखेगी तो उसे भी इस मामले पर विशेष ध्यान देना होगा. अगर जरुरी समझे तो दिल्ली में मौजूद साथी समिति के दफ्तर जाकर भी जानकारी कर सकते है, दोस्तों, हर मोर्चे पर लड़ाई लड़ोगे तभी किसी मोर्चे पे फतह हासिल हो पायेगी.
आशा है, जानकारी आपके काम आएगी, अपनी राय जरूर दें.
आपका
श्याम देव मिश्रा
मुंबई
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